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भाजपा की पराजय को इस नजरिये से भी देखिये

भाजपा की पराजय को इस नजरिये से भी देखिये भारतीय जनता पार्टी झारखंड में चुनाव हार गई। इस हार से सोरेन खेमे से ज्यादा  जश्न कांग्रेस में है। इस हार को ऐसे प्रदर्शित किया जा रहा है जैसे पार्टी का पूरा जनाधार झारखंड से खत्म हो गया हो। अखबारों में खबरें इसी कोण से प्रकाशित हुई हैं कि एक साल में भाजपा ने पांच राज्य गंवा दिए। गंवा दिए, इसमें कोई शक नहीं,झारखंड में भाजपा हारी इसमें भी कोई बहस की गुंजाइश नहीं है लेकिन इसे जिस तरह प्रस्तुत किया जा रहा है उस पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। एक मुहावरा है -ताबूत में आखिरी कील। भाजपा की झारखंड में हार को इसी तरह प्रस्तुत किया जा रहा है और इस रूप में भी कि जैसे यही चुनाव भाजपा की केंद्र सरकार के सभी फैसलों की आखिरी अग्निपरीक्षा रहा हो। थोड़ा पीछे चलते हैं। नोटबंदी के बाद जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए तो मायावती सहित सभी प्रमुख विपक्षी दलों को उम्मीद थी कि नोटबंदी के कारण यहां भाजपा का सूपडा साफ हो जाएगा, इन सभी ने इसकी घोषणा भी की कि यह चुनाव भाजपा की नोटबंदी का लिटमस टेस्ट है,कि जनता इस फैसले के खिलाफ भाजपा को इस चुनाव में सबक सिखा देगी। पर

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